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दिल्ली हाईकोर्ट ने तय किए हैं मानक

सूत्रों के अनुसार इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित मुकदमों की संख्या करीब नौ लाख 16 हजार है। निस्तारित हो चुके मुकदमों की संख्या इससे इतर है। निस्तारित फाइलें भी लाखों की संख्या में है। कर्र्मचारियों को दोनों का
रखरखाव करना होता है।
हाईकोर्ट मेें इस समय स्वीकृत संख्या 1612 कर्मचारी और 555 सुपरवाइजरी स्टॉफ की है। इसमें भी सैकड़ों पद रिक्त हैं। कर्मचारी के जिम्मे फाइलों के अलावा प्रशासनिक कार्यों का भी दायित्व है। यदि प्रशासनिक और अनुभागीय कार्य को अलग कर एक कर्मचारी पर पांच सौ फाइल का मानक रखा जाए तो लंबित फाइलों के रख रखाव के लिए सैकड़ों अतिरिक्त कर्मचारियों की जरूरत होगी।
दिल्ली हाईकोर्ट ने तय किए हैं मानक
दिल्ली हाईकोर्ट ने कर्मचारियों के लिए मानक तय किए हैं। इसके अनुसार एक कर्मचारी के जिम्मे अधिकतम 1000 से 1200 फाइलें होनी चाहिए। ऐसा तब हुआ जब दिल्ली हाईकोर्ट की एक कर्मचारी फाइल गुम होने के कारण जांच के दायरे में आ गई। पता चला कि कर्मचारी निष्ठावान थी मगर उसके पास 4500 फाइलों की जिम्मेदारी थी। इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश की एक कमेटी ने मानक तय किए।
योगेंद्र मिश्र
इलाहाबाद। कमरे की छत तक ऊंचे फाइलों के ढेर, चारों तरफ फाइलों से ही बनी कतारें। फिजा में भी कागजों की खुशबू। यहां सीढ़ियों और गलियारों से लेकर कमरों तक फाइलें ही फाइलें नजर आती हैं। यह नजारा एशिया के सबसे बड़े हाईकोर्ट का है, जहां नौ लाख से अधिक मुकदमे लंबित हैं। सेक्शन कोई भी हो फाइलों की तादाद और हालात एक जैसे ही हैं। इन असंख्य फाइलों के रखरखाव और सुरक्षा की जिम्मेदारी अनुभागों में काम करने वाले कर्मचारियों तथा अधिकारियों की है जो खुद को दस्तावेजों के इस अंबार में दबा पाते हैं। उन पर काम का अत्यधिक बोझ है। फाइलों की संख्या इतनी अधिक है कि इसे डील करने वाले कर्मचारियों को भी सही नहीं पता है कि उसके जिम्मे कितनी फाइलें हैं।
नतीजा यह होता है कि एक अनुभाग से दूसरे अनुभाग में स्थानांतरण होने पर न तो चार्ज सौंपा जाता है और न ही लिया जाता है। दिक्कत तब आती है जब कोई फाइल गुम हो जाती है। जांच उस कर्मचारी की होती है जिसके कार्यकाल की फाइल गायब हुई है। जिम्मेदारी तय करने में दिक्कत आती है। काम के अत्यधिक दबाव से और भी कई दिक्कतें सामने आती हैं। फाइलों की सुरक्षा और उनको कोर्ट लाने-ले जाने के बीच कर्मचारियों को खासा हलाकान होना पड़ता है। समय पर फाइल कोर्ट न पहुंचने की समस्या आम है। कर्मचारी बताते हैं कि समस्या की असल वजह काम का मानक तय नहीं होना है। एक कर्मचारी अधिकतम कितनी फाइलें डील करेगा इसका कोई मानक नहीं है। इसकी वजह से यह तय करना मुश्किल है कि कुल फाइलों के लिए वास्तव में कितने कर्मचारियों की आवश्यकता है।
हाईकोर्ट अधिकारी-कर्मचारी संघ के पूर्व महासचिव बृजेश कुमार शुक्ल ने इस समस्या की ओर मुख्य न्यायाधीश का ध्यान आकृष्ट किया है। चीफ जस्टिस को दिए प्रत्यावेदन में काम का मानक तय करके उसके अनुरूप कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने की मांग की गई है। शुक्ला बताते हैं कि मुकदमों में बेतहाशा वृद्धि होने से पत्रावालियों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। इनके रखरखाव के लिए उचित संख्या में कर्मचारी चाहिए। कर्मचारियों के जिम्मे अत्यधिक फाइलें होने के कारण एक अनुभाग से दूसरे अनुभाग में स्थानांतरण के समय चार्ज सौंपने और लेने में दिक्कत आती है। फलस्वरूप 20-25 साल बाद भी यदि अनुभाग में उसकी तैनाती के समय की कोई फाइल गुम होती है तो कर्मचारी को ही विभागीय जांच का सामना करना पड़ता है।
प्रति कर्मी फाइल का मानक तय न होने से नहीं बढ़ रही कर्मचारियों की संख्या
महत्वपूर्ण दस्तावेजों के रखरखाव और सुरक्षा में आ रही हैं दिक्कतें
संघ के पूर्व महासचिव ने मुख्य न्यायाधीश के सामने उठाई मानक तय करने की मांग
हाईकोर्ट में नौ लाख से अधिक मुकदमे, लाखों फाइलें, करोड़ों पन्ने
‘कर्मचारियों के काम का मानक तय किया जाना चाहिए ताकि उसके अनुरूप उनकी संख्या बढ़ाई जा सके। इससे जहां फाइलों के रखरखाव में सुविधा होगी, वहीं वादकारियों को भी राहत मिल सकेगी।’
राधाकांत ओझा, अध्यक्ष, हाईकोर्ट बार एसोसिएशन

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