शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) 2011 में वाइटनर प्रयोग की जांच माध्यमिक
शिक्षा परिषद नहीं करेगा। परिषद ने शासन को इस निर्णय से अवगत करा दिया गया
है कि परीक्षा से जुड़ा कोई अभिलेख उसके पास मौजूद नहीं है। ऐसे में जांच
संभव ही नहीं है।
प्रदेश में पहली बार टीईटी 2011 का आयोजन माध्यमिक शिक्षा परिषद ने किया था। इस परीक्षा में धांधली के आरोप लगे। परिणाम जारी होने व आला अफसरों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने सारे रिकॉर्ड जब्त कर लिए थे। इसी की जांच में पुलिस को यह पुख्ता सबूत हाथ लगे कि परीक्षा में बड़े पैमाने पर वाइटनर का प्रयोग हुआ था। हाईकोर्ट ने बीते पांच अक्टूबर को प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा को निर्देश दिया कि इस प्रकरण की जांच कर वाइटनर प्रयोग करने वालों की सूची चार महीने में उपलब्ध कराई जाए, साथ ही ऐसा करने वालों पर कार्रवाई भी की जाए। प्रमुख सचिव ने इस संबंध में माध्यमिक शिक्षा परिषद को पत्र लिखा और हाईकोर्ट का फरमान भेजा।
परिषद की सचिव की ओर से शासन को पत्र भेजकर स्पष्ट किया गया है कि परिषद इस मामले की जांच नहीं कर सकता क्योंकि टीईटी 2011 के अंकपत्र की सीडी बहुत मुश्किल से फरवरी 2015 में मिल सकी है। इसके अलावा सारे रिकॉर्ड कानपुर देहात के अकबरपुर थाने में जब्त हैं। जब कोई अभिलेख ही नहीं है तो आखिर जांच कैसे हो सकती है। इस जवाब के बाद शासन अब गृह विभाग के जरिए जांच कराने की तैयारी कर रहा है। हाईकोर्ट के फरमान के दो माह बीत चुके हैं, अगले दो महीने में पूरी जांच होकर रिपोर्ट सौंपा जाना है। इससे आला अफसरों में खलबली मची है।
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प्रदेश में पहली बार टीईटी 2011 का आयोजन माध्यमिक शिक्षा परिषद ने किया था। इस परीक्षा में धांधली के आरोप लगे। परिणाम जारी होने व आला अफसरों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने सारे रिकॉर्ड जब्त कर लिए थे। इसी की जांच में पुलिस को यह पुख्ता सबूत हाथ लगे कि परीक्षा में बड़े पैमाने पर वाइटनर का प्रयोग हुआ था। हाईकोर्ट ने बीते पांच अक्टूबर को प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा को निर्देश दिया कि इस प्रकरण की जांच कर वाइटनर प्रयोग करने वालों की सूची चार महीने में उपलब्ध कराई जाए, साथ ही ऐसा करने वालों पर कार्रवाई भी की जाए। प्रमुख सचिव ने इस संबंध में माध्यमिक शिक्षा परिषद को पत्र लिखा और हाईकोर्ट का फरमान भेजा।
परिषद की सचिव की ओर से शासन को पत्र भेजकर स्पष्ट किया गया है कि परिषद इस मामले की जांच नहीं कर सकता क्योंकि टीईटी 2011 के अंकपत्र की सीडी बहुत मुश्किल से फरवरी 2015 में मिल सकी है। इसके अलावा सारे रिकॉर्ड कानपुर देहात के अकबरपुर थाने में जब्त हैं। जब कोई अभिलेख ही नहीं है तो आखिर जांच कैसे हो सकती है। इस जवाब के बाद शासन अब गृह विभाग के जरिए जांच कराने की तैयारी कर रहा है। हाईकोर्ट के फरमान के दो माह बीत चुके हैं, अगले दो महीने में पूरी जांच होकर रिपोर्ट सौंपा जाना है। इससे आला अफसरों में खलबली मची है।
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