भोपाल. सरकार से नौ कानूनी लड़ाइयां जीत चुके आईएएस अफसर रमेश थेटे के
खिलाफ सरकार ने नए मामले में अभियोजन की स्वीकृति दे दी है। उन पर उज्जैन
संभाग में सीलिंग की जमीन किसानों को वापस करने के मामले में हेराफेरी का
आरोप है। थेटे वर्तमान में बाल संरक्षण आयोग के सचिव हैं।
लोकायुक्त ने उनके खिलाफ 25 मुकदमे दर्ज कर केस चलाने की अनुमति मांगी थी।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मंजूरी के बाद थेटे ने सरकार से 10वीं
लड़ाई के लिए मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने सीएम को पत्र लिखकर कहा कि यदि
गिरफ्तार किया गया तो वे अन्न-जल त्याग देंगे। पत्र में लिखा है कि भले ही
मेरी मौत क्यों न हो जाए, लेकिन परिवार को पेंशन से कोई वंचित नहीं कर
पाएगा।
10 बार गिरवी रखा पत्नी का मंगलसूत्र, सड़कों पर गाने तक गाए
थेटे बताते हैं-मेरी लड़ाई सरकार से कम, लोकायुक्त से ज्यादा है। जब मेरे घर पर लोकायुक्त पुलिस ने छापा मारा था तो केवल 50 रुपए नकद मिले थे। कर्ज इतना था कि सस्पेंड होने के बाद आधी तनख्वाह इसे चुकाने में ही खत्म हो जाती थी। पत्नी का मंगलसूत्र 10 बार गिरवी रखना पड़ा। कई बार ऐसा हुआ कि वकीलों की फीस देने के लिए जबलपुर नगर निगम के सफाई कर्मचारियों ने पैसे दिए, जहां कभी मैं कमिश्नर था। रिश्तेदारों तक ने मेरा साथ छोड़ दिया था। दो बेटियां हैं। उनकी साल भर की फीस 6 हजार नहीं चुका पाने के कारण स्कूल से नोटिस मिलते थे। जब बर्खास्त कर दिया गया, तो परिवार का पेट पालना तक मुश्किल हो गया था। मैंने महाराष्ट्र के कई शहरों में सड़कों पर गाने गाकर परिवार का पेट पाला। लेकिन हिम्मत नहीं हारी। वैसे भी मुंबई के आजाद मैदान के फुटपाथ पर रह कर पढ़ाई की है।
11 साल तक सरकार से लड़ी लड़ाई
2002 में लोकायुक्त ने थेटे को आईटीआई बैतूल के प्रभारी प्राचार्य नारायण बोरले से एक लाख रुपए की रिश्वत लेते पकड़ा था। 7 साल केस चलने के बाद 2009 में हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन खारिज हो गई।
2002 में ही थेटे और उनकी पत्नी के खिलाफ अपेक्स सहित अन्य बैंकों से लिए 50 लाख रुपए के लोन में धोखाधड़ी करने में 7 मुकदमे दर्ज किए गए। 2012 में कोर्ट ने उन्हें सभी मामलों में बरी कर दिया। लोकायुक्त ने अनुपातहीन संपत्ति अर्जित करने का मुकदमा दर्ज किया। 2013 में विशेष न्यायालय ने पक्ष में फैसला दिया।
पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर मुझे फंसाया जा रहा
मेरे खिलाफ जितने भी आरोप लगाए गए। न्यायालय में साबित नहीं हो पाए। जिन मामलों में लोकायुक्त ने मुकदमे दर्ज किए हैं। वैसे ही फैसले पूर्व में आईएएस अफसर एसके वशिष्ठ, स्वर्णमाला रावला और जयदीप गोविंद ने कमिश्नर रहते लिए थे। फिर उनके खिलाफ मुकदमे क्यों नहीं दर्ज हुए? मैंने अपना पक्ष सरकार के सामने रख दिया है।
रमेश थेटे, सचिव, बाल संरक्षण आयोग
10 बार गिरवी रखा पत्नी का मंगलसूत्र, सड़कों पर गाने तक गाए
थेटे बताते हैं-मेरी लड़ाई सरकार से कम, लोकायुक्त से ज्यादा है। जब मेरे घर पर लोकायुक्त पुलिस ने छापा मारा था तो केवल 50 रुपए नकद मिले थे। कर्ज इतना था कि सस्पेंड होने के बाद आधी तनख्वाह इसे चुकाने में ही खत्म हो जाती थी। पत्नी का मंगलसूत्र 10 बार गिरवी रखना पड़ा। कई बार ऐसा हुआ कि वकीलों की फीस देने के लिए जबलपुर नगर निगम के सफाई कर्मचारियों ने पैसे दिए, जहां कभी मैं कमिश्नर था। रिश्तेदारों तक ने मेरा साथ छोड़ दिया था। दो बेटियां हैं। उनकी साल भर की फीस 6 हजार नहीं चुका पाने के कारण स्कूल से नोटिस मिलते थे। जब बर्खास्त कर दिया गया, तो परिवार का पेट पालना तक मुश्किल हो गया था। मैंने महाराष्ट्र के कई शहरों में सड़कों पर गाने गाकर परिवार का पेट पाला। लेकिन हिम्मत नहीं हारी। वैसे भी मुंबई के आजाद मैदान के फुटपाथ पर रह कर पढ़ाई की है।
11 साल तक सरकार से लड़ी लड़ाई
2002 में लोकायुक्त ने थेटे को आईटीआई बैतूल के प्रभारी प्राचार्य नारायण बोरले से एक लाख रुपए की रिश्वत लेते पकड़ा था। 7 साल केस चलने के बाद 2009 में हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन खारिज हो गई।
2002 में ही थेटे और उनकी पत्नी के खिलाफ अपेक्स सहित अन्य बैंकों से लिए 50 लाख रुपए के लोन में धोखाधड़ी करने में 7 मुकदमे दर्ज किए गए। 2012 में कोर्ट ने उन्हें सभी मामलों में बरी कर दिया। लोकायुक्त ने अनुपातहीन संपत्ति अर्जित करने का मुकदमा दर्ज किया। 2013 में विशेष न्यायालय ने पक्ष में फैसला दिया।
पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर मुझे फंसाया जा रहा
मेरे खिलाफ जितने भी आरोप लगाए गए। न्यायालय में साबित नहीं हो पाए। जिन मामलों में लोकायुक्त ने मुकदमे दर्ज किए हैं। वैसे ही फैसले पूर्व में आईएएस अफसर एसके वशिष्ठ, स्वर्णमाला रावला और जयदीप गोविंद ने कमिश्नर रहते लिए थे। फिर उनके खिलाफ मुकदमे क्यों नहीं दर्ज हुए? मैंने अपना पक्ष सरकार के सामने रख दिया है।
रमेश थेटे, सचिव, बाल संरक्षण आयोग