प्रदेश की पहली शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) 2011 के अभिलेखों में
हेराफेरी करके 400 अभ्यर्थियों को पास करने वाले आरोपी कर्मचारी बहाल हो गए
हैं। खास बात यह है कि फर्जीवाड़े की जांच भी पूरी नहीं की गई। जिस
अफसर को जांच सौंपी गई उसने पदावनत होने के बाद इस मामले से चुप्पी साध ली।
इधर कुछ पड़ताल जरूर शुरू हुई, लेकिन बड़े अफसरों ने आरोपियों की बहाली का निर्णय ले लिया। इससे एक बड़े घोटाले पर पर्दा पड़ गया है। इस पूरे मामले की पर्दाफाश तत्कालीन सचिव और इस समय के शिक्षा निदेशक अमरनाथ वर्मा ने खुद किया था। प्रकरण यह था कि माध्यमिक शिक्षा परिषद की टीआर (टेबुलेशन रिकॉर्ड) में हेराफेरी करके 400 से अधिक फेल अभ्यर्थियों को पास कर दिया गया। इसमें दो कर्मचारी निलंबित किए गए। इन पर आरोप है कि अभ्यर्थियों को पास करने के लिए कंप्यूटर एजेंसी की टीआर में हेराफेरी की। इस रिकॉर्ड के आधार पर ही अभिलेखों का सत्यापन होता है। टीआर की प्रतियां एक नहीं कई जगहों पर होती हैं। चूंकि सफल अभ्यर्थियों की पूरी सूची नेट पर भी अपलोड की जा चुकी है इसलिए यह मामला पकड़ में आ गया।
दरअसल 25 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर प्राथमिक स्कूलों में 72825 शिक्षकों की भर्ती का फरमान जारी हुआ तो अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट से डुप्लीकेट या फिर संशोधित अंकपत्र जारी करने का अनुरोध किया था। इसी का फायदा उठाकर रिकार्ड में हेराफेरी की गई थी। तत्कालीन सचिव अमरनाथ वर्मा के सामने कुछ फर्जी अंकपत्र आए तो उन्होंने प्रथम दृष्ट्या कंप्यूटर सेक्शन के दो कर्मचारियों प्रधान सहायक बृजनंदन एवं वरिष्ठ सहायक संतोष प्रकाश श्रीवास्तव को निलंबित कर दिया था और जांच तत्कालीन अपर सचिव प्रशासन राजेंद्र प्रताप को सौंपी थी। इस बीच आरक्षण के तहत प्रोन्नति पाए अधिकारियों को पदावनत किया गया तो राजेंद्र प्रताप भी जद में आ गए। इसके बाद जांच जहां की तहां रुक गई। फर्जीवाड़े में यूपी बोर्ड में धांधली की कार्रवाई छोटे कर्मचारियों पर हुई, लेकिन ‘बड़ों’ के भी शामिल होने से इनकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि 400 या फिर से उससे अधिक को सिर्फ दो कर्मचारी उत्तीर्ण कराने की जुर्रत शायद ही कर सकते थे। शायद इसीलिए करीब छह माह बाद भी जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है।
अफसर को जांच सौंपी गई उसने पदावनत होने के बाद इस मामले से चुप्पी साध ली।
इधर कुछ पड़ताल जरूर शुरू हुई, लेकिन बड़े अफसरों ने आरोपियों की बहाली का निर्णय ले लिया। इससे एक बड़े घोटाले पर पर्दा पड़ गया है। इस पूरे मामले की पर्दाफाश तत्कालीन सचिव और इस समय के शिक्षा निदेशक अमरनाथ वर्मा ने खुद किया था। प्रकरण यह था कि माध्यमिक शिक्षा परिषद की टीआर (टेबुलेशन रिकॉर्ड) में हेराफेरी करके 400 से अधिक फेल अभ्यर्थियों को पास कर दिया गया। इसमें दो कर्मचारी निलंबित किए गए। इन पर आरोप है कि अभ्यर्थियों को पास करने के लिए कंप्यूटर एजेंसी की टीआर में हेराफेरी की। इस रिकॉर्ड के आधार पर ही अभिलेखों का सत्यापन होता है। टीआर की प्रतियां एक नहीं कई जगहों पर होती हैं। चूंकि सफल अभ्यर्थियों की पूरी सूची नेट पर भी अपलोड की जा चुकी है इसलिए यह मामला पकड़ में आ गया।
दरअसल 25 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर प्राथमिक स्कूलों में 72825 शिक्षकों की भर्ती का फरमान जारी हुआ तो अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट से डुप्लीकेट या फिर संशोधित अंकपत्र जारी करने का अनुरोध किया था। इसी का फायदा उठाकर रिकार्ड में हेराफेरी की गई थी। तत्कालीन सचिव अमरनाथ वर्मा के सामने कुछ फर्जी अंकपत्र आए तो उन्होंने प्रथम दृष्ट्या कंप्यूटर सेक्शन के दो कर्मचारियों प्रधान सहायक बृजनंदन एवं वरिष्ठ सहायक संतोष प्रकाश श्रीवास्तव को निलंबित कर दिया था और जांच तत्कालीन अपर सचिव प्रशासन राजेंद्र प्रताप को सौंपी थी। इस बीच आरक्षण के तहत प्रोन्नति पाए अधिकारियों को पदावनत किया गया तो राजेंद्र प्रताप भी जद में आ गए। इसके बाद जांच जहां की तहां रुक गई। फर्जीवाड़े में यूपी बोर्ड में धांधली की कार्रवाई छोटे कर्मचारियों पर हुई, लेकिन ‘बड़ों’ के भी शामिल होने से इनकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि 400 या फिर से उससे अधिक को सिर्फ दो कर्मचारी उत्तीर्ण कराने की जुर्रत शायद ही कर सकते थे। शायद इसीलिए करीब छह माह बाद भी जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी है।