वर्तमान में बेसिक शिक्षा विभाग में होने वाली लगभग समस्त नियुक्तियाँ कोर्ट में विभिन्न वजहों से फसी हुई हैं। मैंने लगभग सभी भर्तियों में कुछ कॉमन तथ्य देखे व विभिन्न कोर्ट केस का अध्ययन किया, जिसके फलस्वरूप, सुप्रीम कोर्ट के निम्न 10 ऑर्डर्स मैंने पृथक किये हैं। बेसिक शिक्षा विभाग की समस्त नियुक्तियाँ इन्हीं 10 कोर्ट केस के चारों ओर घूम रही हैं।
- Breaking - शिक्षा मित्र और स्पेशल कैटेगरी सीट्स जुड़ने का GO जारी : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News
- Breaking - 72825 भर्ती में शिक्षा मित्रों की रिक्त सीटों को जोड़ने सम्बन्धी शासनादेश जारी : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News
नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ, इन 10 ऑर्डर्स के मुख्य अंशों को पढ़िए और कुछ समय के लिए वकील जैसा अनुभव कीजिए 😂
1) Selection criteria has to be adopted and declared at the time of commencement of the recruitment process. The rules of the game cannot be changed after the game is over. Change of criteria of selection in the midst of selection process is not permissible.
(चयन के आधार का निर्धारण और घोषणा, चयन प्रक्रिया शुरू करते समय किया जाना चाहिए। खेल शुरू होने के बाद उसके नियम नहीं बदले जा सकते हैं। चयन प्रक्रिया के मध्य, चयन का आधार बदलने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।)
2) If the requisition and advertisement was for certain posts, the State can not appoint more than the number of posts advertised. The appointments beyond the number of posts advertised would amount to filling up future vacancies" and said course is impermissible in law.
(यदि विज्ञापन निर्धारित पदों को भरने हेतु था तब राज्य सरकार विज्ञापन में निहित पदों से अधिक पदों पर भर्ती नहीं कर सकती है। विज्ञापन में विज्ञापित पदों से अधिक भर्ती का अर्थ भविष्य में रिक्त होने वाली सीटों को अभी से भरना होगा जिसको कि कानूनी दृष्टि से मान्य नहीं किया जा सकता है।)
3) Matters relating to creation and abolition of posts, formation andstructuring/restructuring of cadres, prescribing the source/mode of recruitment and qualifications, criteria of selection, evaluation of service records of the employees fall within the exclusive domainof the employer. The court has no role in determining the methodology of recruitment or laying down the criteria of selection. It isalso not open to the court to make comparative evaluation of the merit of the candidates. The court cannot suggest themanner in which the employer should structure or restructure the cadres for the purpose of improving efficiency of administration.
(पदों को बनाने व खत्म करने, संवर्गों के गठन व पुर्नगठन, भर्ती का स्रोत, तरीका, योग्यता, चयन का आधार, कर्मचारियों के सर्विस रिकॉर्ड का मूल्यांकन से सम्बंधित मुद्दे एक्सक्लूसिव रूप से नियोक्ता के कार्य क्षेत्र में आते हैं। भर्ती करने के तरीके व चयन का आधार तय करने में कोर्ट का कोई रोल नहीं होता है। अभ्यर्थियों की मेरिट का तुलनात्मक मूल्यांकन करना भी कोर्ट के कार्यक्षेत्र में नहीं आता है। व्यवस्था की कार्यक्षमता बढ़ाने हेतु संवर्गों का गठन व पुर्नगठन किस प्रकार किया जाए, इस सम्बन्ध में भी कोर्ट कुछ नहीं कह सकती।)
4) The cut-off date byreference to which the eligibility requirement must be satisfied by the candidate seeking a public employment is the date appointed by the relevant service rules and if there be no cut-off date appointed by the rules then such date as may be appointed for the purpose in the advertisement calling for applications. If there be no such date appointed then the eligibility criteria shall be applied by reference to the last date appointed by which the applications have to be received by the competent authority.
[किसी भी अभ्यर्थी को किसी भी सरकारी नौकरी मे नौकरी पाने हेतु शैक्षिक अर्हता सम्बंधित सर्विस रूल (सेवा नियमावली) में विहित अंतिम तिथि के अनुसार प्राप्त करनी होगी। यदि सर्विस रूल इस विषय में शांत है अर्थात सर्विस रूल में इस सम्बन्ध में कुछ नहीं लिखा है तब शैक्षिक अर्हता उस तिथि तक प्राप्त करनी है जो उस भर्ती के विज्ञापन में दी गई है। यदि विज्ञापन में भी कोई तिथि शैक्षिक अर्हता प्राप्त करने की अंतिम तिथि के रूप में नहीं दी गई है तब शैक्षिक अर्हता उस विज्ञापन में दी गई आवेदन की अंतिम तिथि तक प्राप्त करनी होगी।]
5) The normal rule, of course, is regular recruitment through the prescribed agency but exigencies of administration may sometimes call for an ad hoc or temporary appointment to be made. In such a situation, effort should always be to replace such an ad hoc/temporary employee by a regularly selected employee as early as possible. Such a temporary employee may also compete along with others for such regular selection/appointment. If he gets selected, well and good, but if he does not, he must give way to the regularly selected candidate. The appointment of the regularly selected candidate cannot be withheld or kept in abeyance for the sake of such an ad hoc/temporary employee.
(सामान्य नियम यह है कि स्थायी नियुक्ति की व्यवस्था होनी चाहिए लेकिन कभी कभी प्रशासनिक आवश्यकताओं को देखते हुए अस्थाई या संविदा पर नियुक्ति की जरुरत पढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में हमेशा ऐसे अस्थाई कर्मचारी को जल्द से जल्द स्थाई कर्मचारी से बदलने के प्रयास किये जाने चाहिए। ऐसा अस्थाई कर्मचारी भी स्थायी नियुक्ति की प्रक्रिया में अन्य अभ्यर्थियों के साथ भाग ले सकता है। यदि वह चयन पा जाता है तब तो सब ठीक है लेकिन यदि नहीं पाता है तब उसको स्थायी नियुक्ति पाए व्यक्ति हेतु रास्ता साफ़ करना होगा। स्थायी रूप से चयनित व्यक्ति की नियुक्ति को ऐसे संविदा कर्मी के चक्कर में रोका या बाधित नहीं किया जा सकता है।)
6) It has also to be clarified that merely because a temporary employee or a casual wage worker is continued for a time beyond the term of his appointment, he would not be entitled to be absorbed in regular service or made permanent, merely on the strength of such continuance, if the original appointment was not made by following a due process of selection as envisaged by the relevant rules.
(यह भी साफ़ किया जाता है कि केवल इसलिए कि एक संविदा कर्मी अपने सेवा काल से अधिक कार्य कर चुका है तो वह स्थायी होने का या समायोजित होने का अधिकारी नहीं हो जाता है यदि उसकी नियुक्ति सम्बंधित नियमों में दी गई प्रक्रिया के अनुसार नहीं हुई है।)
7) Experience gained by the respondent on account of his working on the post in question for over a decade cannot be equated with dducational qualifications. In this situation, if the respondent isallowed to continue on this post merely on the basis of hisconcept of "human approach", it would be at the cost of a duly selected candidate who would be deprived of cleared theselection. In fact, it is the "human approach" which requires usto prefer the selected candidate over a person who does notpossess even the requisite qualification.
(अनुभव को योग्यता के बराबर अथवा उसका 'substitute' नहीं कहा जा सकता। यदि किसी व्यक्ति ने किसी पद कई वर्ष कार्य कर के अनुभव प्राप्त किया है फिर भी उस व्यक्ति को सम्बन्धित पद के लिए निर्धारित योग्यता प्राप्त करनी ही होगी। मानवता को आधार मान कर ऐसे व्यक्तियों को निर्धारित योग्यता से छूट नहीं दी जा सकती जबकि निर्धारित योग्यता रखने वाले व्यक्ति मौजूद हों, ऐसा करना योग्य व्यक्ति के साथ घोर अन्याय होगा। यह मानवता का ही आधार है जो कोर्ट योग्य व्यक्ति को ऐसे व्यक्ति से बेहतर समझती है जो निर्धारित योग्यता भी न रखता हो।
8) आर्टिकल 14 तथा 16 सरकारी नौकरियों में समानता के अधिकार की बात करते हैं। जब तक नियुक्ति संवैधानिक नियमों के अधीन तथा योग्य व्यक्तियों के मध्य खुली प्रतिस्पर्धा के बाद नहीं होती तब तक वह नियुक्त व्यक्ति को किसी प्रकार का अधिकार नहीं देती। (Secretary of state of Karnataka vs. Uma Devi)
9) Everybody is forgetting that the scheme of Shiksha Mitra is to spread education and it is not a scheme for employment. What is being given is an honorarium to the concerned teacher. The appointment comes to an end at the end of the academic year, with right to continue if the performance is good.
(सभी भूल रहे हैं कि शिक्षा मित्र योजना शिक्षा के प्रसार के लिए चलाई गई थी न कि रोजगार के साधन के रूप में। उक्त शिक्षक को जो दिया जा रहा है वह 'मानदेय' है। यदि प्रदर्शन अच्छा है तो नवीनीकरण के अधिकार के साथ प्रत्येक शैक्षिक वर्ष के अंत में नियुक्ति समाप्त हो जाती है।)
10) No regularization is, thus, permissible in exercise of statutory power conferred under Article 162 of the Constitution if the appointments have been made in contravention of the statutory rules.
(यदि नियुक्ति कानूनी नियमों के अनुसार नहीं हुई है तब ऐसी अस्थाई नियुक्ति को आर्टिकल 162 के अंतर्गत दी हुई शक्तियों का प्रयोग करते हुए स्थाई नहीं किया जा सकता है।)
- जुझारू प्रत्याशी
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