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3 मई को धरना नाकाम करने में नेता ही जिम्मेदार

3 मई को निदेशालय में सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। और बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी भी दबाव में थे, शायद कुछ सकारात्मक समाचार अगले दिन तक मिल ही जाते। लेकिन कुछ चयनित हुए नेताओं ने ज्यादा ही जोशीली भाषणबाजी करके माहौल को गर्मा दिया। बेरोजगारों ने जोश में आकर होश खो दिए।
एक एक करके सभी अधिकारीयों को उनके ऑफिस में
बंधक बनाकर बाहर से ताला लगा दिया।
लंच टाइम में भी ताला नही खोला। यहाँ
तक की एक कर्मचारी के शौचालय में जाने के
बाद बाहर से शौचालय लॉक कर दिया
गया। और टेट के नेता माइक पर पब्लिक को
भड़काते रहे। धरना नाकाम करने में एक आम
टेटयन्स से ज्यादा हमारे नेता ही जिम्मेदार
रहे। हालाँकि मैं 3 मई की प्रातः ही
इलाहाबाद से खिसक ली थी। जानती
थी कि यहाँ पर अव्यवस्था फैलने वाली है।
नेताओं को कौन जिम्मेदार ठहराए?
क्योंकि याची समझ रहें कि उनका भविष्य
उनके नेताओं के हाथ में है कोर्ट के नही। सब
जानते हैं कि एडहॉक नियुक्ति पाये नेता
जो अपनी नियुक्ति के लिए तो निदेशालय
पहुँचे नही थे लेकिन 24 फ़रवरी के ऑर्डर में

कंसीडर हुए याचियों का रायता बिखेरने
इलाहाबाद पहुँच गए। मयंक तिवारी,
शिशिर जायसवाल, हिमांशु राणा, राहुल
पाण्डेय, आदि सब 1100 याचियों में
नियुक्ति पाये हैं, सभी धरना दिए लेकिन ये
नही गए। जब पूरा यूपी के (7 दिसम्बर के
ऑर्डर के) सभी याची निदेशलय पर धरना कर
रहे थे तब ये लोग फेसबुक पर विरोध कर रहे थे।
फिर अब इन्होंने धरने का आह्वान क्यों
किया ? ताकि ऐसा लगे की उन्होंने
काफी मेहनत की है? या पैसे पचाने के लिए?
और अब एक बार फिर मनमानी व्यख्या करके
गुमराह किया जा रहा है। सोचने वाली
बात तो ये है कि ये नेता टाइप के लोग अब
वैरीफिकेशन जैसा कौनसा प्रोडक्ट
बाजार में उतारेंगे...???

नोट- ये कोई राजनीतिक पोस्ट नही है,
सोच समझ कर ही टिप्पणी करें। वरना सीधे
ब्लॉक करुंगी।
मैं भी अभी अचयनित ही हूँ। ओके।
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