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शिक्षाविभाग व अन्य में डाली जा रहीं छद्म जनहित याचिकाओं पर हाईकोर्ट सख्त

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तथ्य छिपाकर दाखिल की जाने वाली छद्म जनहित याचिकाओं को गंभीरता से लिया है। कोर्ट ने ऐसी ही एक याचिका को खारिज करते हुए कहा कि जिस विषय पर पहले ही याचिका खारिज की जा चुकी हो, उसी विषय पर दोबारा याचिका का औचित्य क्या है। निहित स्वार्थपूर्ति की इस कोशिश पर कोर्ट ने नाराजगी जताई और याची को चेतावनी भी दी गई।
कोर्ट हर्जाना भी लगाने जा रही थी लेकिन याची के छात्र
होने की वजह से ऐसा नहीं किया। नोएडा में भूमि घोटालों की जांच सीबीआइ से कराने के लिए जन कल्याण समिति की ओर से एक जनहित याचिका पहले दाखिल हुई थी। इसमें याची यह साबित करने में नाकाम रहा था कि वह आम आदमी के हितों की रक्षा के लिए यह मांग कर रहा है। इसके अलावा लगाए गए आरोपों के समर्थन में कोई तथ्य भी नहीं प्रस्तुत किया गया था। अदालत में उन प्लाटों के राजस्व अभिलेख भी नहीं रखे गए जिन पर अवैध निर्माण का आरोप लगाया गया था। इस पर मुख्य न्यायमूर्ति डा. डीवाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने याचिका खारिज कर दी थी। मंगलवार को इसी विषय पर एक याचिका विधि छात्र शिवानंद की ओर से दाखिल की गई। इसमें भी वही मुद्दे थे जो जनकल्याण समिति की याचिका में उठाए गए थे। अदालत ने याचिका दाखिल करने की मंशा को संदिग्ध माना और याचिका को खारिज कर दिया। कहा कि चूंकि याचिका छात्र ने दाखिल की है, इसलिए हर्जाना नहीं लगाया जा रहा है।

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