एक ओर प्रदेश सरकार नए-नए मेडिकल कॉलेज खोल रही, दूसरी ओर पुराने कॉलेजों में ही शिक्षकों की कमी दूर नहीं की जा पा रही है। सूबे के 12 राजकीय मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों के 30 फीसदी पद खाली हैं।
एसोसिएट प्रोफेसर के तो आधे से अधिक पद खाली हैं। वहीं प्रोफेसर के भी 36 फीसदी पदों पर नियुक्ति नहीं है। शिक्षकों की कमी के चलते मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की सीटें भी कम होने की आशंका बनी हुई है। साथ ही पढ़ाई पर भी असर पड़ रहा है।
राजकीय मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों की कमी के कारण हर बार मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) के निरीक्षण में सरकार की किरकिरी होती है। जब भी सरकार एमबीबीएस की मान्यता के लिए एमसीआई में आवेदन करती है, उसमें शिक्षकों की कमी व अन्य मूलभूत सुविधाएं न होने की आपत्तियां लगा दी जाती हैं।
अभी तक सरकार जिस मेडिकल कॉलेज का निरीक्षण होने वाला होता था वहां पर दूसरे मेडिकल कॉलेजों से शिक्षकों को बुलाकर तात्कालिक संख्या पूरी कर देती थी।
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